- 53 Posts
- 155 Comments
अन्ना हजारे को समर्पित ये कविता देश के कर्णधारों को सुनाने के लिए एक आवाज़ है.
मैं समय बोल रहा हूँ
तुम क्या सुन रहे हो मेरी आवाज़
देख रहे हो खुली आँखों से
ये सागर की लहरों सा उमड़ता और ऊंचा उठता जन सैलाब?
.
ये क्रोध , ये आक्रोश का सुलगता लावा
तुम्हारी, केवल तुम्हारी वज़ह से
हर पीढ़ी और हर इंसान के टूटे छोटे बड़े सपनों की झंकार .
.
क्या कभी महसूस किया तुमने
इस देश के लोगों के दुखती रगों का दर्द, बैचेनी और नवजवान पीढ़ी की हर पल टूटती उम्मीदों की छटपटाहट की वेदना और अहसास .
.
अभी भी रेत में अपना मूंह छुपा तुम सुनना नहीं चाहते कोई भी आवाज़ .
चाहे वो हज़ारों लाखों करोड़ो जन जन की ही क्यों ना हो.
.
ये आसमान को हिला देनेवाली आवाजें भी तुम्हें सुनाई नहीं पड़ती
क्या तुम बहरे हो गए हो
या सुनना और देखना नहीं चाहते और
समझना भी नहीं चाहते की ये कैसी आवाजें हैं .
.
ये आवाजें नहीं आवाजों की सुनामी है
ये अब संकेत नहीं ये जन क्रांति की गर्जना है .
.
मैं समय बोल रहा हूँ और ये आवाज़े जो तुम सुन कर भी सुनना नहीं चाहते , वो जन क्रांति की आवाजें हैं .
.
जो सुनते और देखते नहीं, उन्हें ये सुनामी की तरह अपने आगोश में ले लेती हैं.
रवीन्द्र के कपूर
कानपूर इंडिया २१.082011
.
Read Comments