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मैं समय बोल रहा हूँ,
मेरे देश के कर्णधारों,
मैं तुम्हें, समय की आवाज़,
सुनाने की कोशिस कर रहा हूँ
.
क्योंकि ऐसा ना हो, कि कल की सुबह,
जब तुम बना कर लाओ,
नई सुबह वाली, नई नीतियाँ,
और भूल जाओ उनमे कहीं, फिर तुम,
समायोजित करना, वो सारी मूल बातें,
जन-जन की इच्छा वाली जन नीतियां.
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क्यों की सत्ता पर बैठे अनेक लोग,
मन से ना चाहेंगे,
कि बनें अच्छी नीतियाँ,
वास्तविकता में बहुतों को
ये बड़ा डर है, कि
सच में ही दुरूपयोग, कहीं यदि रुक गया,
तो भर ना पाएंगी फिर बड़ी तिजोरियां.
और पूरी ना हो पाएंगी अदम्य लालसाएं,
धनकुबेर बनने की बेसुमार गतिविधियां.
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मैं समय बोल रहा हूँ
मेरे देश के कर्णधारों
मैं तुम्हें समय की आवाज़
सुनाने की कोशिस कर रहा हूँ .
.
बहूत बड़ा प्रश्न है, कुछ लोगों के सामने,
एक बड़ी खाई है, रस्ते में इस तरफ,
और शेर खड़ा दहाड़ रहा है, दूसरी तरफ,
पीछे जनता भी खड़ी है कुछ सौगातें लिए,
एक हाँथ में फूल दुसरे में हार लिए.
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बहूत समझ बूझ कर लाईयेगा नई नीतियाँ,
इतिहास की कहीं न हो जाये पुनाविर्तियाँ,
जन सैलाब बस एक बात पूछे और जानेगा,
पिछला क्या इतिहास रहा वो जरूर आंकेगा.
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अगर तुम सत्यपथ के गामी हो,
तो होगा तुम्हारा जन भी अनुगामी,
तालियाँ नहीं, पुष्प वर्षा वो करेगा,
तुम्हारे साहस का वंदन वो करेगा.
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पर अगर तुमने अब भी ना किया,
जनभावनाओं का आदर, इस बार,
और खेल बना डाला,
जनता को फिर एक बार,
किसी मंत्री या सरकारी,
नेता के दबाव में.
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और भूल गए की तुम, बैठाले ही गए हो केवल,
जन जन की भावनाओं,
का करने आदर.
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तो नतीजे तुमखुद समझ सकते हो क्या होंगे,
जन जन को, पाई-पाई का हिसाब तो देना होगा.
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अभी समय है, देश को चलाने वालों तुम्हारे पास,
बनाओ कुछ ऐसा कि इतिहास तुम्हें, याद करे,
ऐसी ना बना देना कहीं फिर एक बार वो नीतियाँ,
की जनता फिर एक बार, ठगा हुआ महसूस करे.
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और फिर एक बार बैठना पड़े कहीं अन्ना को,
और पुरे देश को फिर एक साथ खड़ा होना पड़े.
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मैं तो बस समय हूँ आता जाता रहता हूँ,
छोटे बड़े हर किसी को समय का हर पल,
कोशिस भर अहसास जरूर कराता हूँ,
उम्मीद है इस बार ना करोगे निराश तुम,
समय और जनजन को जरा भी हताश तुम.
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रवीन्द्र के कपूर
Kanpur India 7th Sept. 2011
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