- 53 Posts
- 155 Comments
मेरा ये गीत हमारे उन किसानों को समर्पित है जो सावन के मौसम में भी
बिना जल ओर बारिस के बूढ़े किसान की तरह अपने खेतों को देख कर आसूं
बहा रहे हैं, जिसका मुख्य कारण आदमी के द्वारा जंगलों में पेड़ों का काटना है.
इस कहानी मय गीत को आप You Tube पर एक लोक गीत के रूप में देख सुन भी सकते हैं
जिसके हिंदी की लाईनों को अंग्रेगी में भी रोमन अंग्रेगी के साथ दिया गया हैं.
जिसके लिए आप केवल किसी भी सर्च पर टाइप करें मेरे म्यूजिक चैनल का नाम “RavindraKK1” ओर फिर क्लिक करें 23 07 2012 के अपलोड विडियो को सुनें
Folk Song of India ‘Story of Farmer, Clouds, Rain & Trees’ With English Titles in HIndi.
आशा है ये लोक गीत जागरण के सदस्यों को पसन्द आएगा.
.
खेतवा के पास बैठा,
किसनवा था सोच रहा,
कैसे वो रोपेगा,
धान का पौधा.
.
बादल तो आ आ के,
हैं उड़ जाते,
जंगल में पेड़ नहीं,
जो उन्हें बुलाते.
.
बादलों को किसनवा की,
व्यथा वो बतलाते,
पेड़ों की बात बादल,
हैं, कब टाल पाते.
.
पर अपनी भी तो, पेड़,
व्यथा न कह पाए,
एक-एक कर, काट डाले,
आदमी ने सारे .
.
खेतवा के पास बैठा,
किसनवा था सोच रहा,
कैसे वो रोपेगा,
धान का पौधा.
.
इसीलिए तो बादल,
हैं, अब नहीं आते,
आदमी को देख,
वो दूर भाग जाते.
.
पर बूढ़े किसनवा ने,
रोपे थे बहूत पेड़,
ये सोच बादल भी,
निचे उतर आए.
.
बूढ़े किसनवा की,
आखें थीं व्याकुल,
रह रह कर उनमे थे,
आसूं छलक आते.
.
तभी उमड़े बादलों ने,
देखा उसके आसूं,
पोंछते ही आसूं उसके,
खुद रो पड़े बादल.
.
होने लगी बारिस तब,
भर गया खेतों में जल,
बूढ़े किसनवा ने,
देखा सर उठा के तब.
.
देख कर चारों ओर,
बारिस से भरे खेत,
क्रतग हो निहारा उसने,
बादलों को छू छू के .
.
खुसी के मारे उसके,
छलक आये आसूं,
बरसा फिर और जल,
धोने उसके आसूं.
.
तब जाकर आयी कहीं,
धान रोपने की बारी,
बिन जंगल बिन पेड़,
कहाँ बरसते हैं बादल.
.
खेतवा के पास बैठा,
किसनवा था सोच रहा,
फिर से लगाएगा वो,
जंगल जाकर और पेड़.
रवीन्द्र के कपूर
कानपूर इंडिया 26th July 2012
.
.
.
Read Comments