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मेरा ये गीत हज़ारों लाखों भारतियों के दिलों के वो जज्बात हैं जो
इस देश की वर्तमान दुर्दशा और विवेश रूप से महिलाओं के साथ हो रहे
वहिशियाना बदसलूकी को देख हर सच्चे भारतीय के मन मस्तिष्क
से निकल रहे हैं. क्या ऐसा ही सोचा था हमारे उन वीर स्वतंत्रता सैनानियों ने
इस देश को अंग्रेजों की गुलामी से निकलते समय.
पर जिन्हें कुछ करना है और जिन्हें हमने चुन कर भेज है उनमे से अधिकतर
ही तो इस दुर्शषा को बनाने का कारण हैं. फिर कौन दिलाएगा मेरे देश को इस त्रासदी से
मुक्ति?. काश इस प्रस्न का उत्तर हम खोज पाते…
क्या आप जानते हैं इस प्रस्न का उत्तर? …
.. इस विडियो में जिन प्रकृति की या बादलों की फोटोज को सम्मलित
किया गया है वो गीत के भावों के साथ साथ अपने उदगार करती दिखेंगी.
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मेरा देश है तो भाग १/ ०२
मेरा देश है तो
तुम्हारा भी है ये
फिर क्यों कर रहे हो
ये इसकी दशा .
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वो सपने जो देखे
बनाने इसे
पूरे जहां का
अज़ीज़ हिन्दुस्तां.
.
वो सपने हैं रोते
बिलखते हैं आज
हमें देख कर
और तुम्हें देख कर.
.
क्या ऐसे ही बनाया
जाता है नया जहां
सभी के सपनों को
मसल कुचल के.
.
मासूमों के बचपन
को भिखारी बना
ये कैसा बना डाला
मेरा हिन्दुस्तां.
.
मेरा देश है ये
तुम्हारा भी है
क्यों इसके सीने पे
लुट रही अस्मितां.
.
क्या इतना ही बेबस है आज का इन्सां
कि आबरूंऑं को लुटने वाले दरिन्दे
हैं रोज़ छूट जाते फिर से लूटने को
ये कैसा बना डाला मेरा हिन्दुस्तां
मेरा देश है तो तुम्हारा भी है ये
फिर क्यों हो रही है ये इसकी दशा .
.
इसी की ही माटी में
हम तुम पैदा हुए
इसी की ही माटी
में होंगी साँसें जुदा.
.
सदियों में जा कर
मिला था चमन ये
बड़ी मुश्किलों से
खिली थीं कुछ फिजां.
.
बन सकता था फिर ये
एक नायाब गुलिस्ताँ
एक ऐसा चमन
होतीं बहारें फिदां.
.
पर क्या बना डाला
तूने अपने वतन को
दुनियां के हसने
कि बस एक दास्ताँ.
रवीन्द्र
कानपूर २८ १२ २०१२/ ०४०१ २०१३
जागरण जंक्शन और इस मंच के सभी मित्र लेखकों लेखिकाओं को नव वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ……. रवीन्द्र के कपूर
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