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ये कविता एक प्रयास है देशवासियों को सावधान करने का. देश की अखंडता और सम्मान से बढ़ कर कुछ नहीं होता. किसी भी बलिदान को करना पड़े हमें एक हो किसी भी बलिदान के लिए अपने को तत्पर रखना होगा. इस कविता की अंग्रेजी प्रति पोएट्री सूप पर पहले ही विश्व जनमत हेतु रख्खी जा चुकी है. अगले अंक में मैं कुछ सुझाव दूंगा जिससे की चीन की भारत के द्वारा आर्थिक नाकेबंदी भी की जा सके.
http://poetrysoup.com/poems_poets/poem_detail.aspx?ID=473380
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सावधान
अजगर बढ़ रहा है
वह विश्वास नहीं करता
शांति और प्रतिबद्धताओं मैं
वह केवल निगलने मैं विश्वास करता है
जो कुछ भी मिल सके सीमाओं के अन्दर या की बाहर
दुसरे की सीमाओं से भी परे जाकर निगलने के लिए . 01
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अजगर ने आगे बढ़ने की
बढ़ी चतुर योजनाएँ बनाई हैं
यहाँ तक की ऊँची बर्फ आच्छादित पहाड़ी चोटियों पर भी
क्यों कि अजगर कभी भी
बुद्ध की शांति में विश्वास नहीं करता
ये विश्वास करता है केवल अपनी जरूरत पड़ने पर
पर्तिबद्ध होने की
और अपनी जरूरत पड़ने पर धोखा देने मैं
जिससे की ये अपनी सीमाओं को और अपने
क्षितिज को विस्तार दे सके . 02
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ये पहलेही निगल चूका है
पृथ्वी के सबसे शांत और शोर रहित सुदर भूमि को
जो की हिमालय कि
विशाल उच्चतम चोटियों पर स्थित
ये अजगर अपने पड़ोसियों के विशाल भूखंडों और लगी
सीमाओं को भी निगल कर बैठा है
और ये फिर से निगलने का प्रयास कर रहा है
एक अमन प्रिय पडोसी की कुछ
ऐसी उददत उचाईयों पर की शांत भूमि को
जो की मानवीय मूल्यों और सहस्तित्व मैं
विश्वास रखता है. 03
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होशियार और सावधान
इस अजगर के इरादे बहूत ही विकराल हैं
ये केवल मांस और जानवर ही नहीं खाता
ये निगल जाता है भूमि और पहाड़ों को
ग्लेशियरों और झीलों को
यहाँ तक की बर्फीले मैदानों को, सागरों , तटों
और हर प्रकार की सम्पदाओं को
क्यों की ये उन विचारों में विश्वास रखता है
जो की कहते हैं “सत्ता बन्दूक की नली मैं से मिलती है”
अजगर ने पहले ही अपने हज़ारों स्वतंत्र प्रेमी युवक, युवतियों,
बूढों के स्वप्नों को कुचल मसल रख्खा है. ०४
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सावधान
अजगर बढ़ रहा है
वह विश्वास नहीं करता
शांति और प्रतिबद्धताओं मैं
रवीन्द्र
कानपूर २६ ०४ २०१३
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