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क्योंकि मैं आज़ाद हूँ
देश वासियों को झकझोर देने वाली एक कविता कुछ भागों में
.
“कैसे बड़े हो जाते हैं
वो जज्बात
कि वतन कुछ भी नहीं
कहाँ उड़ जाते हैं
वो सपने कुछ दिलों में
“कि ये मेरा वतन नहीं
और ये मेरे लोग नहीं
क्योंकि मैं आज़ाद इंसान हूँ”.
.
(कुछ युवा मन में उठने वाले विचार उनके दृश्टिकोण से)-
.
कि मैं स्वतंत्र हूँ
कुछ भी सोचने
और करने के लिए
फिर चाहे अपने देश को ही
बर्बाद करने की घोषणा करना हो–
“क्योंकि स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है”
.
“तो क्या हुआ
अगर मैंने
इसी देश का अन्न और नमक खाया है
जब यहां पर मुझे
पैदा किया गया है
तो
ये इस देश का दायित्व है
कि मुझे पाले पोसे
और बड़ा करे”
.
“क्या हुआ अगर मैं यहां
पला और यहीं पर
बड़ा हुआ हूँ
पढ़ना लिखना सीखा यहां
इसी धरती का दूध
और जल पीकर
बचपन और नई उमर और
नए दिनों के जवान सपनों को
सजाया है”
.
“और इसी देश की
धूल और मिटटी में जवान हो
कुछ नए विचारों को
मैंने देखा
पसंद किया
और अपनाया है
पर ये तो मेरा अधीकार है
जो इस देश का संविधान
मुझे प्रदान करता है”.
.
“इस मेरी आज़ादी पर
कोई भी
कैसे सवाल कर सकता है
क्योंकि स्वतन्त्रता
मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है”.
.
फिर एक दिन जब देश कुछ अपेक्षाएं रखना चाहता है तब
.
और
एक दिन
जब इस मिट्टी का
कर्ज चुकाने का समय आता है-
अपने देश के लिए
कुछ करने का समय आता है-
तब सपने देखने लगते हैं
ये कुछ युवा इंकलाब के नाम का
जय कार करते हुए
“कि जंग रहेगी जारी जब तक
हो न जाए
भारत की बर्बादी
तब तक”.
.
कुछ ऐसे ही थे
उन इंक़लाब का
नारा लगाने वालों के विचार
जो JNU में नौ फरवरी को
अपने इन विचारों से
आसमान तक छूते नारों से
देश को बर्बाद करने की
कसमें खा रहे थे.
.
पर गलती
केवल इन युवाओं की नहीं
इस तंत्र की भी है
जिसने शिक्षा के मंदिर को
अखाड़ा बना दिया है
पिछले पैंसठ सालों में
उन शिक्षकों की भी है
जिन्होंने इन्हें
इस विचार धारा को अपनाने में
पूरा सहयोग दिया
और देश के नेता
आँख-मूँद कर देखते रहे
इस विष की पैदावार में
उनके लिए
क्या कुछ उपयोगी है………..
शेष फिर अगले भाग में
Ravindra K Kapoor
Soon in English also
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