Menu
blogid : 2740 postid : 1144336

क़ानून देख रहा है-

Let My Country Wake up and Bloom
Let My Country Wake up and Bloom
  • 53 Posts
  • 155 Comments

ये 9 फरवरी की JNU की सत्य घटना पर आधारित कविता है –
जिसे यहां हिंदी में – मेरी अंग्रेजी की ट्वीट (जो नीचे दी हुई है) को
आधार बना प्रस्तुत किया गया है. रवीन्द्र के कपूर
.
नोट:
मन जिस गहरी वेदना से त्रस्त है उसे व्यक्त करना थोड़ा कठिन हैं. मेरे पिता ने अपना पूरा जीवन जेल और काल कोठरी में गांधी के एक सैनिक होने के नाते बलिदान कर दिया और जब आज़ादी मिली तो कांग्रेस को छोड़ लेखनी का साथ पकड़ बस लिखते रहे- कभी देश को अपने बलिदानों का हिसाब दे कुछ माँगा नहीं और ये आजके नौजवान उसी देश को बर्बाद करने और दुश्मन देश के जय के नारे लगा रहे थे ये सोच कर वेदना होती है कि जिन्हें आज़ादी के माने भी नहीं मालूम वो आज़ादी मांग रहे हैं और कसमें खा रहे हैं इसे बर्बाद करने की….रवीन्द्र के कपूर
.
क़ानून देख रहा है-
.
.”क़ानून देख रहा है-
कन्हैया बेवकूफ बना रहा है-
पिछले साठ सालों में प्रशिक्षित माओवादी समर्थक
कन्हैया को एक हीरो बना रहे हैं
उसे आज़ादी है भारत का माखौल उड़ाने की”
और हमारे वीर जवान
इन्हीं माओवादिओं की गोलियों का शिकार हो
वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं-
.
केवल देश की जागरूक जनता
देख रही है-
मौन बनी
आँखों में आंसू लिए
कि उनके बहादुर बेटे
इन्हीं बेशर्म-बैगैरतों के कारण
दुश्मनों के साथ
अपनों की भी गोलियों से
अपना खून बहा रहे हैं.
.
अभी तक पूरा देश
ये ये सोचता था-
कि देश के ये नौजवान
इस देश को एक मजबूत राष्ट्र बनाएंगे-
भारत को खोया हुआ
उसका पुराना गौरव
“सोने की चिड़िया वाला देश”
फिर से लौटायेंगे-
पर ये तो- धोखा हुआ है
पर अब अहसास हो चुका है
कि ये कुछ बेगैरत नौजवान – तो देश को ही बेच आएंगे
.
क्यों कि इन्हें तो….
“लाल क्रांती लानी है” समाज को बदलना है –
इनके विचारों से-
“धर्म और संस्कृति हमें रूढ़िवादी बनाती है”-
“दर्शन के विचार – हमें दकियानूस और पिछड़ा बनाते हैं”.
इसीलिए इनका आजादी का नारा – पहले था
“आजादी भारत से”
फिर जैसे गिरगिट अपना रंग बदलता है
इन्होने भी अपना रंग बदल लिया है
अब वो बदल गया है –
“आजादी भारत से नहीं भारत में”
“कुछ तोड़ फोड़ कर-
कुछ नया करें- जिसमे देश का ध्यान हमारी ओर खिंचे-
देश को बर्बाद करना ही इन्हें सिखाया गया है.
इनका कहना है- “हम गांधी थोड़े ही हैं
जो सत्य और अंहिंसा के रास्ते
अपने बलिदानों से देश को आगे ले जाएं” –
“हम कुछ देते नहीं हमें सिर्फ छीनना आता है”
.
अरे हम क्रांतीकारी हैं – सब कुछ भस्म कर देंगे
क़ानून की नाक के नीचे
उसी का सहारा ले – क्योंकि हम संविधान को जानते हैं.
कि कब कौन सा रंग बदलना है
अपने को बचाने के लिए- ये हमें मालूम है
कि हमे क्या और कैसे कब करना है
“इस समाज और धर्म की
मनुवादी सोच की-धिज्जियां उड़ाने के लिए”- .
अरे हम क्रांतीकारी हैं”
.
“तुम्हारे
सड़े गले विचारों को कैसे सहते रहें –
अरे हम नौजवान हैं- “बुजुर्ग नहीं
जो बैठ कर- इस उम्र में रामायण पढ़ें
तुम्हारे-प्रवचन सुनें”
.
“हमें मुक्त हो जीना है – जैसा हम चाहें – वैसे .
क्योंकि हम स्वतंत्र हैं”-
और “बोलने और सोचने की आज़ादी
ये सविंधान हमें दे चुका है”
.
भारत की आज़ादी पर
अपना सब कुछ कुर्बान कर
आज़ादी दिलाने वाले
स्वतंत्रा के अमर सेनानियों की आत्मा
पूछ रही थी- क्या ऐसे देशद्रोहियों के लिए
अपना जीवन सुख, आराम लूटा कर
और यहां तक कि
सैकड़ों हज़ारों जीवन बलिदान कर
हमने स्वतंत्रता दिलाई थी ?
.
सैनिकों के माता पिता
सोच रहे थे-
देश पर कुर्बान होने वाले
अपने वीरों को क्या इसलिए
हमने
हँसते हँसते बलिदान कर दिया
भारत माँ पर कुर्बान कर दिया
कि ये देशद्रोही
भारत के क़ानून पर हँसे
और मेरे भारत का
मजाक बनाएं?
.
मौन हो कर भी
भारत का विशाल जनमानस
देख और विचार कर रहा है
कि अब आगे
इस देश को
कैसा नेता देने हैं
और वो
उनमे से बहुत से
बहुत पढ़े लिखे नहीं होने पर भी.
अगले मतदान में
देश से देशद्रोह करने वालों के
समर्थकों को
ऐसा पाठ पढ़ाएंगे
कि उनके गंदे मनसूबे
धरे के धरे रह जाएंगे
पर ऐसे में
हम क्या कर रहे हैं?
क्या हमारा कोई दायुत्व नहीं
अपने देश को
बर्बाद करने वालों से
बचाने के लिए?
………………..रवीन्द्र के कपूर
@kapoor_
समस्या और समाधान – एक मत
मेरे विचार से इसमें नौजवानों की उतनी गलती नहीं जितनी हमारी अपने नीति निर्धारकों की है और इसका केवल एक हल है. हमें अमेरिका की तरह अपने देश के हर उस युवा को जो ग्रेजुएशन कर बाहर निकलता है दो वषों के लिए सेना की सेवा में रहना अविलंब आवश्यक कर देना चाहिए. ये उनके लिए भी जो अभी पोस्ट ग्रेजुएशन या पीएचडी कर रहे हैं. सेना के कड़े अनुशाशन में देश के युवकों को सीमा पर जाकर लड़ने और भाषणों को देने का फ़र्क़ समझ में आएगा. इन दो सालों की सेना की सर्विस में पहले वर्ष इन युवकों को प्रशिक्षित किया जाएगा और दुसरे वर्ष उन्हें कुछ पैसा भी दिया जा सकता है. भारत सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। मैंने प्रधानमंत्रीजी से इस विषय में विचार करने का अनुरोध भी किया है और इस विषय में आप सब का समर्थन और सहयोग भी जरूरी है. आशा है आप बुद्धिजीवी इस कार्य में अपना मत रखने का कष्ट करेंगे। निवेदक। ..रवीन्द्र के कपूर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh